सोमवार, 16 मई 2011

lalsingh



इस बात से तू बेख़बर है... कि एक ख़्वाब की उंगली पकड़कर... सच्चाइयों से लड़-झगड़कर... तुझको मैं सारे हक़ देने... तेरी नींद पर दस्तक देने... सवाले हिज्र को लेकर गया था... मैं कल रात तेरे घर गया था... मुझको यही लगता था शायद... तू अब भी मेरा हमसफ़र है... इस बात से तू बेख़बर है... इस बात से तू बेख़बर